
हम बैठे खामोश,
घुटन में बीत रही यह रात!
दूर कहीं आवाज़ लगाएँ,
चकवा-चकवी साथ।
लेकिन भीतर खाँस रहा है,
बूढों-सा जज़्बात!
पेशानी पर कौन फिराये,
कोमल-कोमल हाथ ?
मन बेसुध, तन साथ हवा के-
पत्ते-जैसा डोले।
भीतर से आवाज उभरती,
शायद कोई बोले!
अपने आप किया करते हैं,
कैसी-कैसी बात ।
उपर-उपर चाँद-सितारे,
अपनी ही मस्ती में....
पर हम तेज़ लहर में बैठे,
हैं ग़म की कश्ती में ।
ऐसे में तेवर दिखलाए,
दुश्मन कायनात ।
बहा-बहा ले गई आँधियाँ,
तिनके-जैसे मन को ।
छोड़ गई हैं निपट अकेला,
तरुवर-जैसे तन को ।
खड़ी फ़सल पर आज उमड़ती,
ओलों की बरसात ।
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By- www.srijangatha.com
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