
इस कदर परिवर्तनों का दौर है परिवेश में,
आदमी दिखता नहीं है आदमी के भेष में ।
रक्त, भाषा, जाति, मज़हब पर बंटा है आदमी,
अस्मिता उलझा हुआ है आपसी विद्वेष में ।
आग बढ़ती जा रही है आँधियों के साथ ही,
युक्ति खोजी जा रही है शांति के संदेश में ।
युद्ध को उन्मत मानव क्यों समझ पाता नहीं,
युद्ध ही बाक़ी बचेगा युद्ध के अवशेष में ।
By- www.srijangatha.com
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