Thursday, August 24, 2006

गजरा टूटा


गजरा टूटा, कजरा फैला,
अस्त-व्यस्त हो गई बेड़ियाँ ।
बिंदिया सरकी, आँचल ढरका,
धुली महावर लगी एड़ियाँ ।
साँसों की संतूर बजी थी,
पायल की खनखन यारों....
जेठ माह की भरी दुपहरी,
बरस गया सावन यारों ।

कंगना खनका, संयम बहका,
प्यास-प्यासा मन भीगा ।
चूड़ी टूटी, बिछुआ सरका,
और पाँव तक तन भीगा।
बिखर गई बंधन की डोरी,
निखर गया तन मन यारों....
जेठ माह की भरी दुपहरी,
बरस गया सावन यारों ।

कुंकुंम फैला,
रोली भीगी,
अक्षत-चंदन गंध धुली।
अलकें बोझिल, निद्रालस में,
लगती हैं अधखुली-खुली,
सांसों की वीणाएँ गूंजी ।
दुर हुआ अनबन यारों ।
जेठ माह की भरी दुपहरी,
बरस गया सावन यारों ।


By- www.srijangatha.com

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