Thursday, August 24, 2006

सपने सजाऊँ


आँख में सपने सजाऊँ
प्रेम की बाती जलाऊँ,
कौन-सा मैं गीत गाऊँ, यह समझ आता नहीं है ।
गीत का मुखड़ा तुम्हारे बिन सँवर पाता नहीं है ।


चाँदनी बेचैन होकर,
देखती है राह कब से ।
खुशबुओं से तर हवाएँ,
पूछती हैं बात हमसे ।
लाज के परदे हटाओ,
दूरियाँ अब तो घटाओ,
रूप के लोभी नयन से अब रहा जाता नहीं है ।
गीत का मुखड़ा तुम्हारे बिन सँवर पाता नहीं है ।


आज खाली है जिगर में,
प्रीत की पीली हवेली ।
बन गई अन्जान सारी,
ज़िन्दगी जैसे पहेली ।
आज मन में नेह भर दो,
प्राण को संतृप्त कर दो,
तन-बदन की इस जलन को अब सहा जाता नहीं है ।
गीत का मुखड़ा तुम्हारे बिन सँवर पाता नहीं है ।


ज़िदगी एक दूसरा ही,
नाम है जैसे हवन का ।
होम करने को मिला हो,
एक पल जैसे मिलन का ।
ध्येय सारे छोड़ आओ,
बंधनों को तोड़ आओ,
वक्त जालिम है प्रिये, वह लौट कर आता नहीं है ।
गीत का मुखड़ा तुमहारे बिन संवर पाता नहीं है ।


By- www.srijangatha.com

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