खार बनते और बिखर जाते ।
ज़िंदगी बोझ बन गयी होती,
दम निकलता और मर जाते ।
पुरसुकूं यह नज़र नहीं होती,
अश्क आँखों में ही ठहर जाते ।
हर क़दम पर ठोकरें होतीं,
चोट लगती और सिहर जाते ।
हर क़दर पर ठोकरें होतीं,
चोट लगती और सिहर जाते ।
ख्वाव रहते नहीं निगाहों में,
फ़िक्र होता हम जिधर जाते ।
जिस्म बस जिस्म रह गया होता,
हम मोहब्बत नहीं अगर पाते ।
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By- www.srijangatha.com
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