सावन के बादल ने जब भी धरती को पैग़ाम लिखा,
मेरे हक में काली रातें, सूरज तेरे नाम लिखा।
तेज़ हवाएँ, भीगा पर्वत, दरिया-बहते–झरनों पर,
उजली-उजली सुबह लिखी है, तन्हा–तन्हा शाम लिखा ।
गुलशन-गुलचे, टहनी-टहनी, नाज़ुक –नाज़ुक फूल खिले,
भीगे पत्तों पर मौसम ने, तुझको एक सलाम लिखा।
चंचल-शोख हवाएँ दिन भर नग़मों को दुहराती हैं,
बारिश की बूँदों ने, तुझ पर सौ-सौ बार कलाम लिखा ।
शम्मा के रौशन चेहरे पर सच्ची-सच्ची बात लिखी,
उल्फ़त का मज़मून लिखा है, चाहत का अंजाम लिखा।
Thursday, August 10, 2006
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2 comments:
Its a very good Poetry. A lot of Thanks & good wishes to the poet.
rajesh sharma
Scientist, NIC, Budaun
so nicee....
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