Tuesday, August 08, 2006

वह मेरा भगवान नहीं था


अवचेतन के भीतर संशय में-
उतरा अनुमान सही था,
वह मेरा भगवान नहीं था ।

वंचित रहकर भी श्रद्धा में,
उस पर ही सर्वस्व लुटाया
अपनेपन का स्वांग रचाकर,
उसने प्राणों को भरमाया ।
अब क्या लेखा-जोखा उसका
अब निधियाँ कितनी बच पाईं
नेहों पर न्योछावर कर दी,
हमने अपनी सकल कमाई ।
दुख है तो इतना ही केवल,
वह इससे अनजान नहीं था ।
वह मेरा भगवान नहीं था।

पत्थर तो पत्थर है आखिर,
मंदिर का हो या हो घर का।
थोड़ा-सा अंतर होता है,
दृष्टिकोण का और नज़र का ।
मेरे भीतर निर्मल-निश्छल,
धाराएँ –सी बहती रहतीं।
इसीलिए जीवन भर पूजा,
दुनिया जिसको पत्थर कहती।
मेरे पूर्ण समर्पण पर भी,
दो पल का अवदान नहीं था।
वग मेरा भगवान नहीं था ।

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By- www.srijangatha.com
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