Thursday, August 24, 2006
गीत गाना चाहता हूँ
आज मन की रुद्र वीणा को,
बजाना चाहता हूँ ।
मैं तुम्हारी अस्मिता के गीत,
गाना चाहता हूँ ।
आज बरसों बाद सुधियों की,
नई खिड़की खुली है ।
तारिकाएँ झिलमिलाती,
चाँदनी-रस में घुली है ।
प्राण है बिलकुल अकेला,
मंदिरों की मूर्तियों-सा ।
इसलिए उसको कहानी,
मैं सुनाना चाहता हूँ ।
कौन जान कब तलक है
आज पलकों पर सवेरा
कालिमा की रात लेकर
आ न जाए फिर अँधेरा ।
आज माटी के दीयों में
भावना की बातियों से
रोशनी का एक दीपक
मैं जलाना चाहता हूँ ।
दृष्टि का सूरज सनातन
आज बादल में घरा है
हर तरफ अंधड़-बगूले
रातभर सावन गिरा है ।
प्यास जागी है अधर पर
कंठ सूखे जा रहे हैं,
तृप्ति पाने को सुधा की
बूँद पाना चाहता हूँ ।
By- www.srijangatha.com
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