Tuesday, August 08, 2006


भारती के नव-पुरोधा नंदनों की
अब सियासत चल पड़ी गठबंधनों की ।

नागफनियों के नए जंगल उगे हैं,
दुर्दशा होने लगी चंदन-वनों की ।

पेट की चिंता यथावत आज भी है,
फ़िक्र अब होने लगी है गर्दनों की ।

बिजलियों की कौंध पर तो बेखबर है,
कौन सुनता है यहाँ बेकल मनों की ?

है बड़ा फ़नकार तो फिर भूख से मर,
क़द्र की मत आस कर अपने फ़नों की ।

इस तरह रिश्ता निभाया दोस्तों ने,
दुश्मनी बेहतर लगी है दुश्मनों की ।

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By- www.srijangatha.com
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