Thursday, August 10, 2006

बादलों ने

देर तक मल्हार गाया बादलों ने,
रात भर हमको सताया बादलों ने ।

हसरतें नाकाम होकर सो गई थीं,
आज उनको फिर जगाया बादलों ने ।

दिल-ज़िगर रूहो-नज़र सब तर–बतर हैं,
आज ऐसा ज़ुल्म ढाया बादलों ने।

अब किसे देखें अँधेरा दर-बदर है,
चाँद का चेहरा छुपाया बादलों ने ।

रेत बनकर तिश्नगी ठहरी हुई है,
ख़्वाब का दरिया बहाया बादलों ने।

सब्ज़ यादों की तरह खामोश रहकर,
शाम ढलते सर उठाया बादलों ने।



***********************
By- www.srijangatha.com
***********************

No comments: