आग लगाता है, तो कोई काँटे बोता है,
छोटे-से इस दिल के अंदर क्या-क्या होता है ।
बारिश होती है, तो बाहर दुनिया हँसती है,
दिल बेतरहा रोए, जैसे बच्चा रोता है ।
शाम हुई खुलती है आँखें, तन्हा रातों में,
खुद से ही बातें करता है, दिन भर सोता है ।
नाज़ उठाने की ज़हमत से जो नावाक़िफ़ था,
दिल है वह ही लेकिन, अब वह पत्थर ढोता है ।
गुज़रे लम्मों के अफ़साने, बीते पल की बातें,
कहते-सुनते अपना दामन आप भिगोता है ।
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By- www.srijangatha.com
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Thursday, August 10, 2006
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