Tuesday, August 08, 2006

तब की बातें


तब की बातें छोड़ो पाठक जी !
अब नेहों का मनुहार बिका करता है ।
खन-खन करते चांदी के टुकड़ों पर,
अब गोरी का सिंगार बिका करता है ।

हाँ ! गाँव –गाँव में राधा रानी है,
और गली-गली में कृष्ण कन्हाई भी ।
लेकिन पनघट पर रार नहीं होता,
अब कुंज, गली में प्यार बिका करता है ।

यह दुनिया एक बाज़ार-सरीखा है,
हर कोई अपना मोल किए बैठा है ।
अपने घर के ही दुश्मन के हाथों,
विश्वसनीय पहरेदार बिका करता है ।

सड़कों पर जैसे इंद्रधनुष चलता,
सतरंगे परिधानों के बादल-सा ।
वैभव के फूहड़ ताने-बाने में,
लिपटा सारा अभिसार बिका करता है ।

हाँ ! देवालय में देव विराजे हैं,
और भक्तों की भरमार दिखा करती है ।
लेकिन श्रद्धा से मुक्त पुजारी हैं,
अब तो सेवा-सत्कार बिका करता है ।



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By- www.srijangatha.com
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